Wednesday 12 October 2011

इन्तजार



ये बंदिशें...ये वेङियाँ....ये समन्दर से किनारे.....
आज नहीं तो कल
शायद....
तोङ बैठे ये बदगुमान दिल....
इसी उम्मीद की साँसें लेकर,
लाशें भी यहाँ जिये जा रहीं हैं......

-kumar

जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें  - अरविन्द