कशिश
सीमाओं से परे इक अलग जहां बसाने की...
Wednesday 12 October 2011
इन्तजार
ये बंदिशें...ये वेङियाँ....ये समन्दर से किनारे.....
आज नहीं तो कल
शायद....
तोङ बैठे ये बदगुमान दिल....
इसी उम्मीद की साँसें लेकर,
लाशें भी यहाँ जिये जा रहीं हैं......
-kumar
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)
जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें - अरविन्द
माँ ....
एक अरसा हो गया माँ, तेरे हाथ के मोटे मोटे रोट खाये हुए वो गीले उपलों को जलाने की जद्दोजहद में तेरे आंचल का गीला होना अब भी याद है मुझे....
काश यूँ होता....
आज मैने अपनी एक प्यारी सी दोस्त की कुछ ऐसी बातें यहाँ लिखने की कोशिश की है जिन्होंने हर बार मुझे ...
(no title)
जमीं पे कर चुके कायम हदें, चलो अब आसमां का रुख करें - अरविन्द