तेरी हर बात पर मैं कितना ऐतबार करता हूँ
नादाँ हूँ,या तू मुझसे अन्जान बनता हैं ?
कभी तो देख डूबकर मेरी आखोँ मेँ हमनशीँ,
दीबाना हूँ,या तू मुझसे अन्जान बनता है ?
मुझे मौका तो दे या कर ले फ़ना खुद मेँ,
बेसबर हूँ,या तू मुझसे अन्जान बनता है ?
तेरी इक इक अदा मेरी नज़रों मेँ क़ैद है,
आइना हुँ,या तू मुझसे अन्जान बनता है ?
तेरे कदमों की आहट से रौशन है मेरा नसीब,
ज़र्रा हूँ,या तू मुझसे अन्जान बनता है ?
खुदा कैसा मेहरबां है तेरी सादादिली पे भी,
वो तुझसा है या तू मुझसे अन्जान बनता है ?
- kumar